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शिवलिंग महात्म्य 

पूज्यो हरस्तु सर्वत्र लिंगे पूर्णाचनं भवेत् ।

                                                                                                               - अग्नि पु० अ० ५४
         यद्यपि शिवलिंग और शिवकी मूर्ति दोनों प्रकारसे सर्वत्र शिवकी पूजा-उपासना होती रही हैं, किन्तु फिर भी शिवलिंगकी पूजा-अर्चनासे ही शिवकी पूजा पूर्ण समझी जाती है । ऋषि-मुनिओंके अनुसार शिवलिंगमें व्यापक-ब्रह्म और समस्त-ब्रह्माण्डका स्वरूप सन्निहित है ।

सर्वलिंगमयी    भूमिः    सर्वलिंगमयं   जगत् ।
लिंगमयानि  तीर्थानि सर्वं लिंगे प्रतिष्ठितम् ।।

                                                                                         - रुद्र संहिता अ० १

         सम्पूर्ण भूमि लिंगमयी है और सम्पूर्ण जगत् भी लिंगमय है , तथा सब तीर्थ भी लिंगमय है । अरे ! इतना ही नहीं, सब कुछ शिवलिंग में प्रतिष्ठित हैं ।

सत्ये ब्रह्मेश्वरं लिंगं वैकुण्ठे च सदाशिवः ।

                                                                                                                     - स्कन्द  पु० स० ७/२८

         सत्यलोक अर्थात् ब्रह्मलोक में ब्रह्मासे स्थापित ब्रह्मेश्वर नामक शिवलिंग हैं और वैकुण्ठ में भगवान् विष्णुसे स्थापित सदाशिव नामक शिवलिंग हैं, वे सदा उनकी पूजा किया करते हैं ।  अरे ! संसार में ऐसा कोई भी स्थान नहीं है जहाँ पर शिवलिंग न हो ।

स्फटिक शिवलिंग रजत पिथिकाके साथ

स्फटिक शिवलिंग रजत पिथिकाके साथ

स्फटिक शिवलिंग रजत पिथिकाके साथ

नर्मदेश्वर शिवलिंग रजत पिथिकाके साथ

नर्मदेश्वर शिवलिंग रजत पिथिकाके साथ

नर्मदेश्वर शिवलिंग (रजत पिथिकाके साथ)

स्फटिक शिवलिंग रजत पिथिकाके साथ

स्फटिक शिवलिंग रजत पिथिकाके साथ

स्फटिक शिवलिंग रजत पिथिकाके साथ

स्फटिक शिवलिंग स्फटिक पिथिकाके साथ

स्फटिक शिवलिंग स्फटिक पिथिकाके साथ

स्फटिक शिवलिंग स्फटिक पिथिकाके साथ

पारद शिवलिंग पारद पिथिकाके साथ

पारद शिवलिंग पारद पिथिकाके साथ

पारद शिवलिंग पारद पिथिकाके साथ

नर्मदेश्वर शिवलिंग (पिथिका रहित)

नर्मदेश्वर शिवलिंग (पिथिका रहित)

नर्मदेश्वर शिवलिंग (पिथिका रहित)

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